नेशनल डेस्क. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर देश में मचे बवाल के बीच अब केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) पर काम करना शुरू कर दिया है। वहीं, पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने एनपीआर से जुड़े काम फिलहाल बंद कर दिए है। हालांकि, एनआरसी और एनपीआर दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है।
एनपीआर का पूरा नाम 'नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर' है। इसके तहत 1 अप्रैल 2020 से 30 सितंबर, 2020 तक नागरिकों का डाटाबेस तैयार किया जाएगा। कर्मचारी देशभर में घर-घर जाकर नागरिकों से जानकारी एकत्रित करेंगे। सरकार ने स्पष्ट किया है कि एनपीआर अपडेशन के दौरान व्यक्ति द्वारा दी गई जानकारी को ही सही माना जाएगा, उसे कोई दस्तावेज नहीं देना होगा।
निवासियों का एक रजिस्टर है एनपीआर
नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) देश के निवासियों का एक रजिस्टर है। इसे नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीयन और राष्ट्रीय पहचान) नियम 2003 के प्रावधानों आधार पर स्थानीय (ग्राम/कस्बा/तहसील) /उपजिला/जिला/राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के लिए नेशनल पापुलेशन रजिस्टर में पंजीयन कराना अनिवार्य है।
किसे माना जाएगा सामान्य नागरिक?
एनपीआर के लिए नागरिक की जो परिभाषा तय की गई है, उसके मुताबिक जो व्यक्ति पिछले 6 महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में निवास कर रहा हो या एक व्यक्ति जो वहां अगले 6 महीने या उससे ज्यादा निवास करने का इरादा रखता है, उसे नागरिक माना जाएगा।
एनपीआर तैयार करने का मकसद
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का उद्देश्य देश में रहने वाले प्रत्येक निवासी की पहचान का एक व्यापक डाटाबेस तैयार करना है। डाटाबेस में नागरिकों की जनसांख्यिकी जानकारी दर्ज की जाएगी। इसका एक मकसद सरकारी योजनाओं की पहुंच असली लाभार्थियों तक पहुंचाना भी है।
जनसांख्यिकी विवरण
एनपीआर के लिए प्रत्येक निवासी का निम्नलिखित जनसांख्यिकीय विवरण लिया जाएगा, जिसे देना आवश्यक है:
वर्तमान स्थिति
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के लिए डाटा, साल 2010 में भारत की जनगणना के लिए घरों के सूचीकरण की प्रक्रिया के दौरान ही एकत्र कर लिया गया था। इस डाटा के अपडेशन का काम साल 2015 में हुए डोर-टू-डोर सर्वे के दौरान ही कर लिया गया। इस अपडेटेड जानकारी का डिजिटलीकरण भी पूरा हो चुका है। इसके बाद नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को भी अपडेट करने का निर्णय हो चुका है।
अप्रैल से सितंबर 2020 के बीच होगा सर्वे
एनपीआर को अपडेट करने का काम साल 2021 की जनगणना के लिए अप्रैल से सितंबर 2020 के बीच होने वाली घरों की सूचीकरण प्रक्रिया के साथ होगा। केंद्र सरकार इस आशय को लेकर एक राजपत्रित अधिसूचना पहले ही प्रकाशित कर चुकी है। ये प्रक्रिया असम को छोड़कर देश के अन्य सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में होगी। असम को बाहर इसलिए रखा गया है क्योंकि अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए वहां एनआरसी (नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) की प्रक्रिया पहले ही हो चुकी है।
तीन चरणों में पूरी होगी प्रक्रिया
नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होगी। पहला चरण 1 अप्रैल 2020 लेकर से 30 सितंबर 2020 के बीच होगा, जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी घर-घर जाकर आंकड़े जुटाएंगे। दूसरा चरण 9 फरवरी 2021 से 28 फरवरी 2021 के बीच पूरा होगा। तीसरे चरण में 1 मार्च 2021 से 5 मार्च 2021 के बीच संशोधन की प्रक्रिया होगी।
एनआरसी से कितना अलग है एनपीआर?
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। एनआरसी का मकसद देश में अवैध रूप से रह रहे बाहरी नागरिकों की पहचान करना है, वहीं जनसंख्या रजिस्टर का उद्देश्य किसी स्थान पर छह महीने या उससे ज्यादा वक्त से रह रहे निवासियों की जानकारी एकत्र करना है। अगर कोई बाहरी नागरिक भी देश के किसी हिस्से में छह महीने से ज्यादा वक्त से रह रहा हो तो उसका नाम भी इसमें दर्ज होगा।
कब शुरू हुई थी प्रक्रिया
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार में साल 2010 में एनपीआर बनाने के लिए पहल की गई थी। साल 2011 में हुई जनगणना के पहले इस पर काम शुरू हुआ था। अब फिर 2021 में जनगणना होनी है। ऐसे में एनपीआर पर भी काम शुरू हो रहा है।
अब होगी आठवीं जनगणना
देश में हर दस साल में एक बार जनगणना की जाती है। आजादी के बाद से अबतक कुल सात बार जनगणना हो चुकी है। पहली जनगणना साल 1951 में हुई थी। वहीं पिछली जनगणना साल 2011 में हुई थी। फिलहाल 2021 की जनगणना के लिए काम चल रहा है।
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